۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
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हौज़ा / हौज़ा ए इल्मिया ईरान के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने इस्लामी क्रांति के वैश्विक महत्व इस्लामी मनोविज्ञान के भविष्य और इस्लामी विज्ञानों के विकास में हौज़ा इल्मिया की भूमिका पर ज़ोर देते हुए कहा कि इस्लामी क्रांति वैश्विक शक्तियों के एकतरफा रवैये के खिलाफ एक सुधारात्मक भूमिका निभाता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार,हौज़ा इल्मिया ईरान के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने इस्लामी क्रांति का महत्व और इस्लामी मनोविज्ञान का भविष्य पर आयोजित एक सम्मेलन में संबोधन किया।

उन्होंने वर्तमान परिस्थितियों को संवेदनशील और असाधारण बताते हुए कहा कि हर व्यक्ति को रहबर ए मुअज़्ज़म की हिदायतों का पालन करना चाहिए। उनका कहना था कि महत्वपूर्ण ऐतिहासिक क्षणों में मौजूद रहना और सही निर्णय लेना बेहद आवश्यक है अन्यथा उनके प्रभाव लंबे समय तक बने रह सकते हैं।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने वैश्विक शक्तियों के एकतरफा रवैये पर आलोचना करते हुए कहा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पांच देशों ने दुनिया को विभाजित करके अपनी मर्ज़ी से एक वैश्विक प्रणाली बनाई जबकि मुस्लिम दुनिया मूक दर्शक बनी रही।

इसके विपरीत इस्लामी क्रांति एक सुधारात्मक और सुधारवादी संवाद है जो वैश्विक एकतरफा रवैये को चुनौती देता है। उनके अनुसार, इस क्रांति का उद्देश्य बहुत व्यापक है जिससे वैश्विक शक्तियाँ भयभीत हैं और इसी कारण इसे बड़े चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

उन्होंने बताया कि हौज़ा इल्मिया क़ुम ने इस्लामी विज्ञानों के विकास और विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है खासकर इस्लामी क्रांति के बाद इस्लामी विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में नई दिशाएँ सामने आईं।

उन्होंने स्पष्ट किया कि यह प्रगति आधुनिक दुनिया की समस्याओं और इस्लामी क्रांति के तहत होने वाले परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए इस्लामी विज्ञान की पुनर्रचना की आवश्यकता का परिणाम है।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने इस्लामी मनोविज्ञान को इस्लामी नैतिकता के साथ जोड़ते हुए कहा कि इस्लामी नैतिकता को आधुनिक नींवों पर स्थापित करना आवश्यक है उन्होंने सुझाव दिया कि पुस्तक (जामेेए सआदत)को आधुनिक शोध के साथ दोबारा व्यवस्थित किया जाए ताकि नैतिक गुणों का विश्लेषण आधुनिक मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुरूप किया जा सके।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा कि इस्लामी मनोविज्ञान के माध्यम से विश्वासों को दिल और दिमाग में मजबूत किया जा सकता है। मनोविज्ञान के सिद्धांतों को इस्लामी सोच में उपयोग करते हुए लोगों के रवैयों और विश्वासों को सुदृढ़ किया जा सकता है।

उन्होंने आगे कहा कि कुरान और हदीस में मौजूद इंसानियत पर आधारित शिक्षाओं को मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए ताकि इस्लामी मनोविज्ञान की नींव मजबूत हो सके। उन्होंने एक विश्वकोष तैयार करने का सुझाव दिया जिसमें कुरान और हदीस के मनोवैज्ञानिक विषयों पर आधारित व्याख्याएँ और व्याख्यात्मक टिप्पणियाँ शामिल हों।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने इस्लामी विज्ञान और सामाजिक विज्ञान में वैज्ञानिक संघों की भूमिका पर ज़ोर देते हुए कहा कि हमें एक ज्ञान का मार्गदर्शन करने वाला संस्थान चाहिए जो विभिन्न शैक्षिक क्षेत्रों को कवर करे और शैक्षिक प्रगति में सहायक बने। संघों को अपनी जिम्मेदारियों का विस्तार करते हुए एक व्यापक शैक्षिक व्यवस्था बनाने में भूमिका निभानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि इस्लामी विज्ञानों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावशाली बनाने के लिए विश्वविद्यालयों और अन्य वैश्विक शैक्षिक संस्थानों के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने की आवश्यकता है।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने इस्लामी क्रांति के महत्व इस्लामी मनोविज्ञान के भविष्य, और इस्लामी विज्ञान के विकास में हौज़ा इल्मिया की भूमिका पर जोर दिया उन्होंने इस्लामी मनोविज्ञान और नैतिकता के नवीकरण कुरानी विज्ञान के मनोवैज्ञानिक पहलुओं की पुनर्रचना, और वैज्ञानिक संघों की जिम्मेदारियों पर प्रकाश डाला ताकि इस्लामी विज्ञानों को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा दिया जा सके।

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